Geeta Bhavan Sitamarhi बिहार में स्थित सिर्फ ईंट और पत्थरों की एक इमारत नहीं, बल्कि भारत की आजादी, सांस्कृतिक विरासत और महान नेताओं की यादों का एक जीवंत दस्तावेज माना जाता है। यह स्थान स्वतंत्रता आंदोलन के साथ-साथ महात्मा गांधी, देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद और स्वतंत्रता सेनानी सांवलिया बाबू की प्रेरणादायक गाथा को अपने भीतर समेटे हुए है। यहां अंग्रेज़ी शासन के समय की कई दुर्लभ वस्तुएं और किताबें आज भी संरक्षित हैं, जो आने वाली पीढ़ियों को इतिहास से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
🔹 पुस्तकालय की शुरुआत और ऐतिहासिक पहचान
गीता भवन की स्थापना का इतिहास अत्यंत रोचक है। वर्ष 1959 में स्वतंत्रता सेनानी सांवलिया बाबू के घर को धार्मिक और आध्यात्मिक पुस्तकों के पुस्तकालय में परिवर्तित किया गया, जिसे बाद में ‘गीता भवन’ का नाम दिया गया। इसकी स्थापना के समय कई राष्ट्रीय हस्तियों ने शुभकामना और अनुशंसा पत्र भेजे थे, जिनमें मुख्य रूप से डॉ. राजेंद्र प्रसाद, महर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन और शिवानंद जी महाराज शामिल थे। यह मूल अनुशंसा पत्र आज भी भवन में सुरक्षित है, जो इस स्थान की ऐतिहासिक महत्व को और भी गौरवपूर्ण बनाता है।
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🔹 राष्ट्रीय नेताओं का विश्राम स्थल रहा Geeta Bhavan Sitamarhi
गीता भवन का परिचय सिर्फ उसके पुस्तकालय तक सीमित नहीं रहा है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि देश के अनेक बड़े नेता यहां आकर ठहरते थे। वर्ष 1931 में डॉ. राजेंद्र प्रसाद पहली बार यहां आए, और सांवलिया बाबू से रिश्तेदारी होने के कारण जब भी वे सीतामढ़ी आते, यहीं ठहरते थे।
सांवलिया बाबू के पोते डॉ. आनंद प्रकाश वर्मा के अनुसार, डॉ. राजेंद्र प्रसाद तीन बार गीता भवन आए होने की पुष्टि उपलब्ध दर्ज रिकॉर्ड से होती है। वे बताते हैं कि सांवलिया बाबू को बापू (महात्मा गांधी) के साथ जुड़कर आजादी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने की प्रेरणा भी डॉ. राजेंद्र प्रसाद से ही मिली थी।
सांवलिया बाबू मूल रूप से बक्सर के निवासी थे, लेकिन अंग्रेजों द्वारा उनका घर जला दिए जाने के बाद वह परिवार सहित सीतामढ़ी आ गए और यहीं स्थायी रूप से रहकर आजादी आंदोलन में सक्रिय हो गए।
🔹 महत्वपूर्ण बैठकों और आजादी की योजनाओं का केंद्र
गीता भवन स्वतंत्रता आंदोलन के कई निर्णायक अध्यायों का प्रत्यक्ष साक्ष्य रहा है।
चंपारण आंदोलन, नमक सत्याग्रह और अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष की कई रणनीतियां इसी भवन में बैठकों के दौरान बनाई गईं।
इतिहास यह भी बताता है कि महात्मा गांधी यहां ठहर चुके हैं और अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध आंदोलनों की दिशा तय करने वाली चर्चाएं इसी भवन के भीतर हुईं। इस कारण यह जगह उस समय आजादी के दीवानों और आंदोलन चलाने वाले नेताओं का विशेष केंद्र रही, जहां से कई गतिविधियों को नेतृत्व मिला।
🔹 दुर्लभ वस्तुएं और स्वाधीनता संग्राम का अभिलेखागार
गीता भवन में गांधी जी से जुड़े कई दुर्लभ अवशेष आज भी सुरक्षित रखे गए हैं, जिनमें शामिल हैं:
- बापू द्वारा लिखी चिट्ठी
- उनका उपयोग किया हुआ फाउंटेन पेन
- महात्मा गांधी का टाइपराइटर
- बापू का लोहे का पलंग
- उस दौर की कुर्सी और टेबल
- अंग्रेजों के शासनकाल का रेडियो (जिसकी आवाज गर्म होने पर धीरे-धीरे बढ़ती है)
इन सभी वस्तुओं को डॉ. आनंद प्रकाश वर्मा और उनकी पत्नी ममता वर्मा अत्यंत सावधानी और सम्मान के साथ संरक्षित करके रखे हुए हैं। यही कारण है कि शोधकर्ताओं, इतिहास प्रेमियों और विद्यार्थियों के लिए यह स्थान एक अनमोल अध्ययन केंद्र बन गया है।

🔹 ज्ञान, संस्कृति और अनुसंधान का भंडार
आज गीता भवन हजारों दुर्लभ पुस्तकों का ख़ज़ाना संजोए हुए है। यहां धार्मिक ग्रंथों के साथ-साथ विभिन्न भाषाओं की लगभग 5000 पुरानी और दुर्लभ किताबें व्यवस्थित रूप से सुरक्षित रखी हुई हैं —
📌 वेद, ऋचाएं, पुराण
📌 हिंदी, अंग्रेज़ी, उर्दू, बांग्ला, पंजाबी और अरबी भाषा के साहित्य और धार्मिक ग्रंथ
इनमें से कई किताबें अब सामान्य पुस्तकालयों में उपलब्ध नहीं हैं, जिससे यह स्थान पढ़ाई, शोध और आध्यात्मिक अनुभव का एक विशिष्ट केंद्र बन गया है।
🔹 आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा
गीता भवन केवल अतीत का प्रतीक नहीं, बल्कि स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर शिक्षा और संस्कृति तक एक अमिट विरासत का प्रतिनिधित्व करता है।
स्वर्गीय सांवलिया बिहारी वर्मा, जो जिले के पहले विधान पार्षद और स्वतंत्रता सेनानी रहे, ने यहां बैठकर आंदोलन की कई महत्वपूर्ण रणनीतियां तैयार कीं।
1923 में गांधी जी के सुझाव पर उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी छोड़कर वकालत शुरू की और जीवन को राष्ट्रसेवा के लिए समर्पित कर दिया।
इस भवन में उनके संघर्ष, गांधी-राजेंद्र प्रसाद की विरासत और भारत के स्वतंत्रता इतिहास का भावनात्मक और प्रेरक अध्याय आज भी संरक्षित रूप में मौजूद है।
यही कारण है कि गीता भवन न केवल ऐतिहासिक धरोहर है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा, ज्ञान और देशभक्ति का निरंतर स्रोत बनकर स्थापित है।
📌 निष्कर्ष
सीतामढ़ी का Geeta Bhavan Sitamarhi भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास का दुर्लभ और मूल्यवान केंद्र है। यहां संरक्षित वस्तुएं, दुर्लभ पुस्तकें और राष्ट्रीय नेताओं की स्मृतियां आज भी यह संदेश देती हैं कि स्वतंत्रता केवल संघर्ष का परिणाम नहीं, बल्कि राष्ट्र के महान नायकों के त्याग और समर्पण का प्रतीक है।
समय की कसौटी पर खरा उतरकर यह ऐतिहासिक भवन आज भी देश के सांस्कृतिक और राष्ट्रीय गौरव को जीवित रखे हुए है — और भविष्य की पीढ़ियों को अपने इतिहास से जोड़ने का दायित्व निभा रहा है।
FAQ
गीता भवन क्या है?
Geeta Bhavan Sitamarhi के डुमरा क्षेत्र में स्थित एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक भवन है, जिसे आज़ादी आंदोलन, गांधी जी और डॉ. राजेंद्र प्रसाद की विरासत का महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है। यहां धार्मिक और ऐतिहासिक पुस्तकों का विशाल पुस्तकालय भी है।
Geeta Bhavan Sitamarhi की स्थापना कब और कैसे हुई?
1959 में सांवलिया बाबू के पैतृक घर को धार्मिक और आध्यात्मिक पुस्तकों के पुस्तकालय में बदला गया और इसका नाम “गीता भवन” रखा गया।
Geeta Bhavan Sitamarhi का आज़ादी आंदोलन से क्या संबंध है?
चंपारण आंदोलन, नमक सत्याग्रह और अंग्रेजों के विरुद्ध कई रणनीतियाँ और योजनाएँ यहीं बैठकर बनाई गईं। यह स्थान उस दौर में स्वतंत्रता सेनानियों का प्रमुख केंद्र था।
कौन-कौन से बड़े नेता यहां ठहर चुके हैं?
Geeta Bhavan Sitamarhi में महात्मा गांधी तथा देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद सहित कई स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रीय नेता रुक चुके हैं।
