अरमानों की अर्थी विदिशा, मध्य प्रदेश: अक्सर कहा जाता है कि माता-पिता के लिए उनकी संतान ही उनका संसार होती है, लेकिन जब वही संतान उनके विश्वास को ठेस पहुँचाती है, तो वह दुःख सहन करना कठिन हो जाता है। मध्य प्रदेश के विदिशा जिले से एक ऐसी ही हृदयविदारक और हैरान कर देने वाली घटना सामने आई है, जहाँ एक परिवार ने अपनी जीवित बेटी को मृत मानकर उसका पुतला जलाया और बाकायदा शव यात्रा निकाली।
लापता सविता और पुलिस की तलाश
घटना की शुरुआत तब हुई जब विदिशा की रहने वाली 23 वर्षीय सविता कुशवाह अचानक घर से लापता हो गई। काफी खोजबीन के बाद जब उसका कहीं पता नहीं चला, तो परेशान परिवार वालों ने थाने जाकर उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई। परिवार को अंदेशा था कि उनकी बेटी किसी बड़ी मुसीबत में हो सकती है।
पुलिस ने मामले की गंभीरता को देखते हुए investigation शुरू की। साइबर सेल और मुखबिरों की मदद से पुलिस को सविता की लोकेशन मिली। पुलिस ने जब दबिश दी, तो सविता को Sanju Malviya नाम के युवक के साथ पाया गया। बताया जा रहा है कि जब पुलिस वहां पहुँची, तो दोनों साथ में समय बिता रहे थे।
संवैधानिक अधिकार और परिवार का सामना
पुलिस नियमानुसार सविता और संजू को थाने ले आई और सविता के परिवार को सूचित किया गया। परिवार वाले बड़ी उम्मीदों और प्यार के साथ उसे वापस ले जाने आए थे। पुलिस ने सविता को उसके परिजनों के सामने खड़ा किया और उससे उसकी इच्छा पूछी।
चूँकि सविता 23 वर्ष की है और बालिग (adult) है, इसलिए भारतीय संविधान के अनुसार उसे अपनी मर्जी से रहने और अपना जीवनसाथी चुनने का पूरा अधिकार है। Relationship legal और संवैधानिक होने के कारण पुलिस उस पर कोई दबाव नहीं डाल सकती थी। जब सविता से पूछा गया, तो उसने स्पष्ट शब्दों में अपने माता-पिता और भाई के साथ जाने से इनकार कर दिया। उसने संजू मालवीय के साथ ही रहने का फैसला किया और सबके सामने उसके साथ चली गई।

अरमानों की अर्थी: आटे का पुतला और अंतिम संस्कार
बेटी के इस फैसले ने परिवार को झकझोर कर रख दिया। जिस बेटी को उन्होंने उंगली पकड़कर चलना सिखाया, उसने एक पल में सालों के रिश्तों को नकार दिया। इस आघात और गुस्से में परिवार ने एक ऐसा कदम उठाया जिसकी चर्चा पूरे प्रदेश में हो रही है।
कुशवाह परिवार ने तय किया कि उनके लिए उनकी बेटी अब मर चुकी है। उन्होंने एक बोरी flour (आटा) मंगवाया और उससे सविता का एक पुतला तैयार किया। इस पुतले को नए कपड़े पहनाए गए और उसे एक अर्थी पर लेटाया गया।
बैंड-बाजे के साथ निकली शव यात्रा
यह कोई साधारण शोक सभा नहीं थी। परिवार ने बाकायदा band and music वाले को बुलाया। जिस तरह एक अंतिम विदाई दी जाती है, ठीक उसी तरह सविता के पुतले की शव यात्रा निकाली गई। दुख और आक्रोश के बीच गाजे-बाजे के साथ यह यात्रा शहर के मुख्य रास्तों से होते हुए Muktidham (cremation ground) पहुँची। वहाँ पूरे विधि-विधान के साथ पुतले को मुखाग्नि दी गई और उसका ‘अंतिम संस्कार’ कर दिया गया।
भाई का दर्द: “हमने अपने अरमानों की अर्थी निकाली है”
इस भावुक क्षण में सविता के भाई Rajesh Kushwaha की आँखों में आंसू और दिल में गहरी टीस थी। उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा:
“हमने उसे बहुत लाड-प्यार से पाला था। उसकी हर छोटी-बड़ी इच्छा पूरी की, कभी किसी चीज़ की कमी नहीं होने दी। लेकिन उसने हमारे मान-सम्मान और प्यार की परवाह नहीं की और हमें बीच राह में छोड़कर चली गई। आज हमने अपनी बहन की नहीं, बल्कि अपने उन अरमानों की अर्थी निकाली है जो हमने उसके लिए संजोए थे। हमारे लिए वह आज मर चुकी है।”
कानूनी पहलू (Legal Perspective)
कानूनी तौर पर देखा जाए तो Personal Liberty के तहत सविता का फैसला सही हो सकता है, लेकिन सामाजिक और पारिवारिक दृष्टिकोण से इस घटना ने एक नई बहस छेड़ दी है। Police action इस मामले में सीमित थी क्योंकि दो बालिग अपनी मर्जी से साथ रह रहे थे।
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निष्कर्ष: अरमानों की अर्थी
अरमानों की अर्थी; विदिशा की यह घटना आधुनिक समाज में बदल रहे रिश्तों और पारिवारिक बिखराव की एक कड़वी तस्वीर पेश करती है। जहाँ एक तरफ Constitutional rights व्यक्ति को आजादी देते हैं, वहीं दूसरी तरफ पारिवारिक भावनाएं और संस्कार अक्सर इस आजादी के टकराव में टूट जाते हैं।
